Home उत्तराखण्ड स्थाई तैनाती की राह देखता👉 वन विभाग

स्थाई तैनाती की राह देखता👉 वन विभाग

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अजय अनेजा 👉 ब्यूरो चीफ 👉 की खास रिपोर्ट 👉देहरादून। जंगल चुप हैं। पेड़ बोल नहीं सकते, मगर अगर कभी उन्होंने बोलना शुरू कर दिया, तो सबसे पहले यही कहेंगे हमें अकेला क्यों छोड़ दिया? उत्तराखंड के घने जंगलों की जिम्मेदारी फिलहाल ‘दोहरा चार्ज’ ढो रहे अफसरों के कंधों पर है। विभाग में स्थायी तैनाती की जगह ‘जुगाड़ व्यवस्था’ चल रही है, और सिस्टम, जैसे हमेशा की तरह, किसी समाधान की प्रतीक्षा में है।
राज्य में डिवीजन से लेकर सर्किल तक एक ही अधिकारी कई-कई कुर्सियों पर बैठे हैं। उन्हें न तो स्थाई सहयोग मिल रहा है, और न ही पूरी तरह समय। वन महकमा, जो खुद प्रकृति के संरक्षण का दायित्व निभाता है, अब अपनी ही संरचना के लिए संघर्ष कर रहा है।
एसडीओ स्तर के अफसरों की तबादला सूची अभी विचाराधीन है। मतलब जिनका ट्रांसफर होना है, वह भी नहीं हो रहे और जिन पर जिम्मेदारी है, उनके पास वक्त नहीं है। नतीजा? प्रभारी एसडीओ बनाए जा रहे हैं, ताकि दोहरे चार्ज की व्यवस्था कुछ हद तक हल्की हो सके। लेकिन हल्का होना और समाधान होना दो अलग बातें हैं।
साल 2010 बैच के आईएफएस अधिकारी चंद्रशेखर सनवाल, जो हाल ही में प्रतिनियुक्ति से लौटे हैं, उन्हें अब तक कोई ज़िम्मेदारी नहीं सौंपी गई है। यानी एक ओर अधिकारी दोहरी जिम्मेदारियों से जूझ रहे हैं, और दूसरी ओर सक्षम अधिकारी बिना जिम्मेदारी के इंतजार में हैं।
प्रमुख वन संरक्षक (हाफ़) समीर सिन्हा मानते हैं कि विभाग में अधिकारियों की कमी है। उन्होंने कहा जिन स्थानों पर प्रभारी व्यवस्था के तहत स्थाई तैनाती दी जा सकती है, उसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
लेकिन सवाल है क्या सिर्फ प्रयासों से जंगल सुरक्षित हो जाएंगे? क्या प्रकृति को ‘अस्थायी प्रभारी व्यवस्था’ से संरक्षण मिल पाएगा?
उत्तराखंड का वन विभाग फिलहाल उसी डगमग नाव की तरह है, जिसमें मांझी भी एक नहीं, दो नावों की पतवार थामे हुए है। अब देखना यह है कि इस नाव को किनारे लगाने की जिम्मेदारी कौन उठाएगा शासन, मंत्रालय या प्रकृति खुद?डीपी बलूनी: टौंस डिवीजन संभाल रहे हैं, लेकिन साथ में उत्तरकाशी डिवीजन भी उनके हवाले है।

नीरज शर्मा, एसडीओ देहरादून: कालसी डिवीजन के खाली होने के कारण उसका अतिरिक्त प्रभार भी इन्हें ही मिला हुआ है।ध्रुव सिंह मार्तोलिया, एसडीओ रामनगर: साथ ही सिविल सोयम रामनगर की जिम्मेदारी भी इन्हीं पर है।

साकेत बडोला, निदेशक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व: एक बेहद संवेदनशील पद। लेकिन इसके साथ-साथ उन्हें वेस्टर्न सर्कल की वन संरक्षक की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी दे दी गई है।

हेमचंद गहतोड़ी: नैनीताल और रानीखेत के सिविल सोयम डिविजनों की दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

दीपक सिंह, एसडीओ अल्मोड़ा: सिविल सोयम अल्मोड़ा की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी उठाए हुए हैं।

सर्वेश दुबे:बदरीनाथ और केदारनाथ डिवीजन, दोनों का भार उनके कंधों पर है।

इनके अलावा चंद्रशेखर जोशी और कल्याणी को प्रभारी वन संरक्षक बनाया गया है, लेकिन कल्याणी को शासन में अपर सचिव का दायित्व भी सौंपा गया है।

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